Deepawali 2024: सुख, संपदा और वैभव की अधिष्ठात्री देवी माता लक्ष्मी का दुनिया का सबसे अनोखा और अनूठा मंदिर मप्र के ओरछा में स्थित है। मंदिर श्रीयंत्र को आधार रखकर बनाया गया है। इसके प्रवेशद्वार पर उल्लू की चोंच का आकार किया गया है। सबसे अहम बात माता लक्ष्मी को समर्पित इस मंदिर का गर्भगृह खाली है। यहां की प्रतिमा करीब 41 साल पहले चोरी हो गई थी। मंदिर में माता की प्रतिमा न होने के बावजूद भी यहां पूजा-पाठ की जाती है। धनतेरस से दीपावली तक हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। मान्यता है कि दीपावली की रात मंदिर व परिसर में दीपक प्रज्जवलित करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और धन-धान्य, सुख-शांति, स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।
मप्र में भगवान श्रीरामराजा की नगरी और बुंदेलखंड की अयोध्या के नाम ओरछा में माता लक्ष्मी का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। ओरछा किले से करीब 2 किमी दूर पहाड़ी पर लक्ष्मी मंदिर स्थित है। यह अद्वितीय वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है। यह मंदिर अनूठा इसलिए है क्योंकि इसको आकार किले और मंदिर का एक सुंदर समावेशन है। उल्लु की चोंच के आकार का मुख्यद्वार, श्रीयंत्र के आधार पर यह लक्ष्मी मंदिर बना है।
दुनिया में ऐसा कोई मंदिर नहीं, राज सिहांसन खाली है
दुनिया का ओरछा का लक्ष्मी मंदिर इकलौता है, जहां माता लक्ष्मी की प्रतिमा मौजूद नहीं है। यहां गर्भगृह में माता लक्ष्मी का राज सिहांसन खाली है। माता के भक्त और श्रृद्धालु गर्भगृह की चौखट से खाली सिहांसन की पूजा करके लौट जाते हैं। धनतेरस और दीपावली पर यहां हजारो श्रृद्धलु आते हैं। मंदिर के अंदर-बाहर, गर्भगृह में रोशनी करते हैं, चारों तरफ हजारों दीपक जलाते हैं और मंदिर को रोशनी से जगमग करते हैं।
41 साल पहले चोरी हो गई थी माता लक्ष्मी की प्रतिमा
ओरछा के इस लक्ष्मी मंदिर में माता लक्ष्मी और भगवान नारायण की अद्भुत और अलौकिक प्रतिमा को गर्भगृह में विराजमान कराया गया था, ऐसा यहां के पुरातत्ववेत्ता और जानकार बताते हैं। यह मंदिर उल्लू की चोंच के आकार के प्रवेशद्वार के आधार पर इसलिए बनाया गया है, क्यों यहां तंत्रशास्त्र के अनुसार मां की पूजा होती थी। यहां श्रीयंत्र व माता लक्ष्मी की श्रीविद्या को जागृत करने के लिए अनुष्ठान होते थे। लेकिन पुरातत्व महत्व के इस मंदिर और यहां विराजमान माता लक्ष्मी व भगवान श्रीनारायण की प्रतिमा को 1983 में रात के अंधेरे में चोरी कर लिया गया था। आज तक प्रतिमा चोरी करने वाले गिरोह व प्रतिमा का पता नहीं चल सका है। इस कारण मंदिर का गर्भ गृह आज भी खाली ही है।
राजा वीरसिंह देव ने 402 साल पहले बनवाया था
ओरछा में 16 वीं शताब्दी में शासक रहे राजा वीरसिंह देव ने ओरछा में कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया था। उन्होंने 1622 ईसवी में लक्ष्मी मंदिर का वैदिक और आध्यामिकता के साथ वास्तुकला का ध्यान रखते हुए श्रीयंत्र के आकार में निर्मित कराया था। मंदिर का1793 में पृथ्वी सिंह द्वारा पुनः निर्माण कराया गया। मंदिर की भीतरी दीवारों को पौराणिक विषयों के उत्कृष्ट भित्तिचित्रों से सजाया गया है। इनके रंग आज भी जीवंत हैं और लगता है कि चंद साल पहले ही इनका निर्माण कराया गया होगा। मंदिर के अंदर हर गलियारे और गुंबद सहित कोने-कोने में आकर्षक रंगों से भगवान लक्ष्मीनारायण, भगवान श्री राधाकृष्ण से लेकर राजाओं के युद्ध से जुड़ी कथाओं को बयां करते चित्र अंकित किए गए हैं।
मान्यता है कि दीपावली पर दीप जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं
ओरछा रियासत के शासक वीरसिंह जूदेव ने अपने राज्य को धन्यधान्य से भरपूर रखने और माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी मंदिर का निर्माण कराया था। हर ओर से देखने पर त्रिकोणाकार, श्रीयंत्र के आधार व उल्लू की चोंच के प्रवेशद्वार वाला यह मंदिर मंत्र शक्ति को जागृत करने के लिहाज से तैयार कराया गया था। जानकार बताते हैं कि मान्यता है कि इस मंदिर में दीपावाली की अमावस की काली रात में दीपक जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और कृपा बरसाती हैं।
देश में सिर्फ यहीं श्रीराम को ‘राजा’ के रुप में पूजते हैं
ओरछा को भगवान श्रीराम की नगरी के रुप में पहचाना जाता है। इसके बुंदेलखंड की अयोध्या की संज्ञा दी गई है। देश का यह इकलौता मंदिर है जहां भगवान को राजा श्रीराम के रुप में पूजा जाता है। जबकि अयोध्या में भगवान को बाल स्वरुप में श्री रामलला के रुप में पूजा जाता है। कभी बुंदेलखंड की राजधानी रही ओरछा रियासत मप्र के सबसे छोटे जिले निवाड़ी की तहसील है। जामुनी और बेतवा नदी के किनारे मौजूद यह छोटा सा शहर ऐतिहासिक स्थल सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे हुए है।